कविता /महुआ -लक्ष्मी लहरे


कविता /महुआ
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पिंवर पिंवर दिखत हे

डारा पाना संग झूलत हे
नोनी के दाई बिनसरिहा ल महुआ ल बिनत हे
बरछा के मेड म
हावे महुआ के कोरी अकन पेड़
बरछा ह महमहावत हे
मन ह हरसावत हे
मीठ मीठ महक ले
बरछा ह महकत हे
रस्दा रेंगईया मन महुआ ल देखत हें
नोनी के दाई कोंघर के महुआ ल बिनथ हे
बिन बिन के झांहु म धरथ हे
महुआ ल बिन के रोजी रोटी चलथ हे
महुआ के हावें अबड़ मान
देवी – देवता के भोग म चढ़त हे
जिनगी के संदेस छुपे हावे महुआ म
भुईंया म गिर के सुघ्घर महकत हे
जिनगी के मीठ मीठ संदेस देवथ हे
पिंवर पिंवर दिखत हे
डारा पाना संग झूलत हे
बरछा ह महमहावत हे
जिनगी के सुघ्घर संदेस गुंगुनावत हे
लक्ष्मी नारायण लहरे ” साहिल ”

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