कविता / छिम्मियाँ की छिम -छिम आवाजें ...
कविता
छिम्मियाँ की छिम -छिम आवाजें ...
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पतझड़ की आहट और बसंत की दस्तक
मन में उमंग और उमंगित का विषय भर नहीं है
गुलाबी ठंठ की अलविदा की भी कहानी छुपी है
सूर्य की किरणें तेज होते हुए भी गुमनाम लगती है
जब सावन का महीना दिन भर बादल बरसती है
ऋतुओं का राजा बसंत जब आता है
पतझड़ की नव -सुबह पेड़ों में खुशियाँ लाता है
अमरैय्या में पहटिया का दस्तक
गाय -बैलों के बीच का एक आँगन में सम्बन्ध
यह कोई समझौता नहीं एक दूसरे के प्रति स्नेह भाव है
बसंत की दस्तक से
उपवन और बागियों में बाहर उमड़ पड़ी है
सिसम की ऊँचे -ऊंचे वृक्ष में महकती फूलों की बहार है
गुलमोहर और पसरसें भी खिलने को ब्याकुल हैं
पतझड़ बूढ़ा हो चला है
बसंत अपनी नव उम्मीदों से चहक रही है
प्रकृति की सुंदरता मन को हर्षित लग रही है
सिसम में लगे फल डालियों में हिल -डुल रहे हैं
सूखे छिम्मियाँ की छिम -छिम आवाजें
छंद बद्ध हवा की लहरों से बज रही है
लय बद्ध छिम -छिम की आवाजें
संगीत की धुन की तरह मन को भा रही है
अपने छंद और लय से बंसत की स्वागत गीत गा रही है
छिम -छिम की आवाजें मन को भरमा रही है
पतझड़ की गीत बसंत को सुना रही है
प्रकृति की नव सन्देश के साथ छिम -छिम बज रही है
लक्ष्मी नारायण लहरे 'साहिल,
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